गोंडा। परिषदीय विद्यालयों का गजब हाल है, यहाँ चार रुपये में एक फल देने की व्यवस्था साल 2016 से ही चल रही है। बच्चों को मौसमी और ताजे फल देने का फरमान साल 2016 में जारी हुआ था। उस समय ही फल का मूल्य चार रुपये तय किया गया था। इसमें अभी तक कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है, अब छह साल बाद भी चार रुपये में ही फल दिया जा रहा है। लगातार फलों के दाम में वृद्धि हो रही है। इसके बावजूद इस मद में कोई बढ़ोतरी न होने से प्रधानाध्यापकों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। मौजूदा समय में चार रुपये में फल कैसे खिलाएं, इससे प्रधानाध्यापकों की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं।
जिले के 2628 स्कूलों के बार लाख से अधिक बच्चों को हर हफ्ते सोमवार को फल दिया जाता है। बच्चों की पौष्टिक आहार मिले, इसके लिए विभाग ने फल
बच्चों की अमरूद, केला, सेब, संतरा, नाशपती, चीकू व शरीफा जैसे फल देने के निर्देश हैं। बच्चों को कटे फल नहीं देने हैं। पपीता, तरबूज व खरबूजा आदि फलों के
छह साल पहले शुरू हुई थी वितरण की योजना, तभी तय किया गया था मूल्य
गोंडा में तरबगंज के एक स्कूल में फल दिखाते बच्चे
की व्यवस्था की थी। स्कूल के प्रधानाध्यापक पहले ही एमडीएम के कन्वर्जन कास्ट कम होने की समस्या से जूझ रहे हैं, भोजन बनवाने की व्यवस्था पसीने छूट रहे हैं। ज्यादातर स्कूलों में केला करने में ही पसीना छूट रहा है। ऊपर से ही बांटा जा रहा है। चार रुपये की दर से फल की व्यवस्थ करना भी बड़ी समस्या है।
शिक्षकों के मुताबिक केला 40 से 50 रुपये दर्जन मिलता है। इससे एक फल चार से पांच रुपये में पड़ता है। इसके अलावा कोई फल 100 रुपये किलो से कम नहीं है। चिरौरी करनी पड़ती है। एक किलो में कोई भी फल सात से दस
पीस के बीच ही चढ़ता है। सेब तो 120 वितरण पर रोक है कटे फल देने से बच्चों रुपये किलो की व्यवस्था की थी। स्कूल के प्रधानाध्यापक पहले ही एमडीएम के कन्वर्जन कास्ट कम होने की समस्या से जूझ रहे हैं, भोजन बनवाने की व्यवस्था करने में ही पसीना छूट रहा है। ऊपर से चार रुपये की दर से फल की व्यवस्था करना भी बड़ी समस्या है।
बच्चों को अमरूद, केला, सेब, संतरा, नाशपती चीकू व शरीफा जैसे फल देने के निर्देश हैं। बच्चों को कटे फल नहीं देने हैं। पपोता, तरबूज व खरबूजा आदि फलों के वितरण पर रोक है। कटे फल देने से बच्चों को नुकसान होने की आशंका जताई जा रही है। मौजूदा समय में फल के मूल्य ऐसे हैं कि बच्चों को एक फल देने में प्रधानाध्यापकों के पसीने छूट रहे हैं। ज्यादातर स्कूलों में केला ही बांटा जा रहा है।
शिक्षकों के मुताबिक केला 40 से 50 रुपये दर्जन मिलता है। इससे एक फल चार से पांच रुपये में पड़ता है। इसके अलावा कोई फल 100 रुपये किलो से कम नहीं है। एक किलों में कोई भी फल सात से दस पोस के बीच ही चढ़ता है सेतो 120 है। रुपये किलो है। केला ही एक ऐसा फल है कि इकठ्ठे और एक ही दुकान में लगातार लेने में दुकानदार कुछ सस्ता भी कर देता है। विभाग द्वारा फल के लिए निर्धारित बजट न बढ़ाए जाने से बच्चों को केला ही मिल पाता है। फल बांटने की मजबूरी है और तय बजट भी देखना है।