इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा कि एक अपराध में समान संलिप्तता पर वयस्क आरोपी को जमानत दे दी गई तो किशोर को भी जमानत पर रिहा होने का अधिकार है।
यह आदेश न्यायमूर्ति शमीम अहमद ने हत्या के एक मामले में किशोर आरोपी की जमानत मंजूर करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि एक बार वयस्क सहअभियुक्त को जमानत दी गई तो किशोर न्याय अधिनियम की धारा 12 (1) के तहत प्रावधान की आवश्यकताओं के संदर्भ में किशोर के मामले का अलग से जांच करने का कोई औचित्य नहीं है। किशोर न्याय अधिनियम के इस प्रावधान में यह कहा गया है कि एक किशोर को जमानत नहीं दी जानी चाहिए, यदि यह मानने का उचित आधार है कि रिहाई से किशोर किसी अपराधी के साथ जुड़ जाएगा या उसे नैतिक, शारीरिक व मनोवैज्ञानिक खतरा हो सकता है। इस मामले में किशोर के पिता ने आश्वासन दिया है कि वह उसे अपनी देखरेख में रखेगा और किसी भी प्रकार की गलत संगत में नहीं पड़ने देगा।
मामले के तथ्यों के अनुसार विशेष न्यायाधीश पॉक्सो एक्ट वाराणसी के आदेश के विरुद्ध एक किशोर आरोपी की ओर से निगरानी दाखिल की गई थी। किशोर की आपराधिक अपील खारिज कर दी गई थी और किशोर न्याय बोर्ड वाराणसी ने उसे जमानत पर रिहा करने से से इनकार कर दिया था।
किशोर के खिलाफ हत्या व जानलेवा हमला के आरोप आईपीसी की धारा 147, 149, 302, 307, 323, 324, 354 व 506 के तहत मुकदमा दर्ज है। हमले में दो व्यक्ति घायल हुए और बाद में उनमें से एक की मौत हो गई थी। याचिका के अनुसार घटना की तारीख पर किशोर की आयु 17 वर्ष 3 महीने और 19 दिन थी। वह 15 अगस्त 2020 से जेल में है और अधिकतम सजा की पर्याप्त अवधि पूरी कर चुका है। एक किशोर के लिए तीन साल की संस्थागत कैद की अनुमति है। यह भी कहा गया कि वयस्क सहअभियुक्त की जमानत पहले ही मंजूर हो चुकी है।