लखनऊ: नगर निगम में हुए 64.32 करोड़ रुपए के पीएफ घोटाले की रकम की रिकवरी होगी। नगर निगम के डिप्टी कलेक्टर यमुनाधर चौहान ने निजी सफाई एजेंसियों से इसकी रिकवरी की बात कही। रकम न जमा करने वाली एजेंसियों से उन्हें भुगतान की जाने वाली रकम से कटौती की जाएगी। सफाई एजेंसियों ने नगर निगम के कुछ अधिकारियों के साथ मिलकर ईपीएफ घोटाला किया है। सभी ने मिलकर कर्मचारियों के हिस्से की यह रकम की आपस में बंदरबांट की है। हमारे सहयोगी अखबार हिन्दुस्तान ने 23 मार्च के अंक में इसका खुलासा किया था। नगर निगम के अधिकारी खुद इस बात को मान रहे कि इसमें बड़ा घोटाला हुआ है। नगर आयुक्त अजय कुमार द्विवेदी के पत्र में भी इस घोटाले का जिक्र किया गया है। उन्होंने लिखा है कि एजेंसियों ने सफाई कर्मचारियों का ईपीएफ खाता ही नहीं खुलवाया है। कुछ ने खाता खुलवाया तो उसमें पैसा ही नहीं जमा किया है।
हिन्दुस्तान के खुलासे के बाद नगर निगम में इसको लेकर खलबली मच गई है। निजी एजेंसियां भी परेशान हुई हैं। डिप्टी कलेक्टर यमुना धर चौहान ने बताया कि जिन एजेंसियों ने ईपीएफ के पैसे का गबन किया है उनसे इसकी रिकवरी की जाएगी। उन्होंने कहा कि इस घपले में शामिल कोई भी नहीं बचेगा। सभी दोषियों से ईपीएफ की रकम की रिकवरी की जाएगी।
कुल 32 एजेंसियों ने हड़पे 64.32 करोड़ रुपए
नगर निगम में मैन पावर सप्लाई करने वाली कुल 32 एजेंसियां काम कर रही हैं। यह एजेंसियां नगर निगम को सफाई कर्मचारी सप्लाई कर रही हैं। इन्हीं 32 एजेंसियों ने नगर निगम के अफसरों के साथ मिलकर यह घोटाला किया है। केवल दो वर्ष में ही इन सभी ने 64.32 करोड़ रुपए पर हाथ साफ किया है। इससे पहले भी यह घोटाला हुआ है। नगर निगम के सूत्र बताते हैं अगर विस्तार से जांच हो गई तो यह 200 करोड़ रुपए से अधिक का घोटाला निकलेगा।
इसलिए एजेंसियों के खिलाफ एफआईआर से बच रहे अधिकारी
64.32 करोड़ का ईपीएफ घोटाला करने वाली एजेंसियों के खिलाफ नगर निगम के अधिकारी एफआईआर कराने से बच रहे हैं। नगर आयुक्त अजय कुमार द्विवेदी को खुद इस घोटाले के बारे में स्पष्ट तौर पर जानकारी है। उन्होंने अपने पत्र में खुद ही लिखा है की सफाई कर्मचारियों के ईपीएफ के लिए दी जा रही 29% रकम उनके खातों में नहीं जमा हुई है। इसके बावजूद उन्होंने इनमें से किसी एजेंसी के खिलाफ न तो एफआईआर दर्ज कराई न उन्हें ब्लैक लिस्ट किया है।
नगर निगम सूत्रों का कहना है कि निगम के अधिकारी इसलिए इनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहे हैं क्योंकि कई एजेंसियां नगर निगम के अधिकारियों, कर्मचारियों के रिश्तेदारों के नाम पर हैं। कुछ एजेंसियां पार्षदों के रिश्तेदारों की हैं तो कुछ अन्य एजेंसियां दूसरे प्रभावशाली लोगों की हैं। नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग में तैनात एक बड़े बाबू की खुद की तीन एजेंसियां है। इनमें से एक को हटाया गया था जबकि दो अभी भी काम कर रही हैं।
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