हमीरपुर : बीते पांच वर्षों में जिले में परिषदीय विद्यालयों की शैक्षिक गुणवत्ता बढ़ी है। बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए बेहतर माहौल देने के लिए आपरेशन कायाकल्प से जर्जर विद्यालयों की सूरत बदल दी गई। जिले के करीब 80 प्रतिशत विद्यालय स्वच्छता को लेकर कान्वेंट विद्यालयों को मात दे रहे हैं। वहीं शेष में निर्माण कार्य जारी है। इसके अलावा नए शिक्षकों की भर्ती कर इनकी कमी को काफी हद तक पूरा किया गया है।
जर्जर विद्यालयों, शिक्षकों की कमी व गुणवत्ता विहीन शिक्षा के लिए बदनाम बेसिक शिक्षा का मौजूदा में स्वरूप बदला है। जिससे न केवल अभिभावक बच्चों की शिक्षा के प्रति आश्वस्त है। वहीं बच्चों के लिए विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने को बेहतर माहौल भी तैयार किया गया है। इसके लिए शासन द्वारा चलाई गई आपरेशन कायाकल्प योजना अच्छी साबित हुई है। इससे जर्जर विद्यालयों को बेहतर स्वरूप दे। प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर बच्चों के लिए सुविधा संपन्न व साफ स्वच्छ बनाया गया है। जिले में संचालित 968 परिषदीय विद्यालयों में शामिल 591 प्राथमिक, 217 उच्च प्राथमिक व 160 कंपोजिट विद्यालयों में योजना के तहत काम कराया जाना है। हालांकि जिले में शासन की मंशानुरूप 19 पैरामीटरों पर मौजूदा में 80 प्रतिशत विद्यालय संतृप्त हो सके है। शेष में काम जारी है। जिनमें टायल्स लगवाने, फर्नीचर व बाउंड्री निर्माण कार्य पूर्ण कराया जा रहा है।
जिले में तैनात हुए 868 नए शिक्षक :
पांच वर्ष पूर्व जिले के परिषदीय विद्यालयों में शिक्षकों की तैनाती का हाल यह था कि एक विद्यालय में केवल एक शिक्षक तैनात था। जिसे दूर किया गया है। इसके लिए शासन ने रुकी पड़ी शिक्षकों की भर्ती को पूर्ण करा जिले में 868 नए शिक्षकों की तैनाती की।
82 स्कूलों में स्मार्ट क्लास संचालित : कान्वेंटों की तर्ज पर परिषदीय विद्यालय के बच्चों को भी सुविधाएं दी जा रही है। जिसके तहत जिले के 82 विद्यालयों में स्मार्ट क्लास संचालित है। जिसमें बच्चे टीवी के माध्यम से आनलाइन शिक्षा प्राप्त करते है। इसके अलावा कुरारा कस्बा स्थित कस्तूरबा आवासीय विद्यालय में भी जल्द स्मार्ट क्लास संचालित होगी।
पढ़ाई के प्रति रूचि जगाने को बनाए पुस्तकालय : शासन के निर्देश पर जिले के सभी 968 परिषदीय विद्यालयों में बच्चों में पढ़ाई के प्रति रूचि जाग्रत करने को पुस्तकालय बनाए गए है। जिसमें बने रीडिग कार्नर में पहुंच बच्चे अपनी पसंद की पुस्तकें पढ़ते है।
कम हुआ ड्राप आउट स्तर : पांच वर्ष पूर्व की तुलना में जिले का ड्राप आउट स्तर कम हुआ है। शिक्षकों द्वारा घर-घर भ्रमण कर बच्चों को स्कूल में प्रवेश दिलाने के लिए अभिभावकों को प्रेरित किया गया। जिसके चलते करीब एक लाख से बढ़कर बच्चों का नामांकन जिले में एक लाख आठ हजार 30 पहुंच गया है। अभिभावकों को खाते में मिल रही धनराशि :
पूर्व में परिषदीय विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों को यूनीफार्म, जूता-मोजा व बैग आदि समय पर नहीं मिल पाता था। वहीं आपूर्ति करने वाली फर्म देर से इनकी आपूर्ति करती थी। लेकिन अब अभिभावकों के खाते में धनराशि जाने से वह अपनी मन पसंद यूनीफार्म समेत अन्य सामान खरीद सकते है।
शिक्षकों को गृह अपने जिलों में मिली तैनाती : दूरस्त जनपदों में तैनात शिक्षकों को अपने गृह जनपद में तैनाती मिली है। इसके लिए शासन स्तर से दिशा निर्देश जारी कर पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से उन्हें गृह जनपद में तैनाती दिलाई गई है। ---
पहले की तुलना में विद्यालयों में शिक्षा व्यवस्था में सुधार आया है। जहां स्कूलों में टूटे फूटे कमरों में बच्चे पढ़ते थे। लेकिन अब स्कूल देखते ही बनते है।
- वीर सिंह, अभिभावक
कोरोना संक्रमण में विद्यालय बंद रहने से परेशानी हुई है। लेकिन स्कूल खुलने पर स्कूलों में पढ़ाई बेहतर होती रही। वहीं बच्चों जर्जर भवनों के बजाय चमचमाते कक्ष में बैठाकर पढ़ाई कराई जा रही है।
- धर्मेंद्र कुमार, अभिभावक
पांच साल पहले तो बच्चे को यूनीफार्म साल के अंत में मिलती थी। जिससे पहले उसे बिना यूनीफार्म स्कूल जाना पड़ता था। अब तो किताबें और ड्रेस सही समय पर मिलते है।
- संतोष कुमार, अभिभावक
इस वर्ष तो बच्चे की यूनीफार्म, बैग आदि के रुपये अभिभावकों के खाते में भेजे गए है। जिससे वह अपनी मनपसंद ड्रेस, जूता-मोजा आदि खरीद बच्चे को पहना सकते है।
- अशोक, अभिभावक