इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और महासचिव रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल तिवारी ने पदोन्नति में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की पीठ की ओर से दिए गए फैसले का अध्ययन किया है। उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जो फैसला सुनाया है, उससे इस मामले में और स्पष्टता आई है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि पदोन्नति में आरक्षण किसी ग्रुप पर नहीं दिया जाएगा। आरक्षण कैडर पर होगा क्योंकि किसी एक ग्रुप में कई कैडर शामिल होते हैं।
सिविल और संविधान के विशेषज्ञ वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल तिवारी कहते हैं कि केंद्र और राज्य को हर कैडर का डेटा तैयार करना होगा। इससे सभी कैडर को पदोन्नति में आरक्षण के समान अवसर मिलेंगे। ऐसा नहीं होगा कि किसी एक ग्रुप में पांच कैडर हैं तो किन्हीं कैडर को फायदा हो और किसी कैडर को नुकसान हो जाए। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि 2006 में एन नागराज बनाम केंद्र सरकार मामले में पांच जजों की संविधान पीठ ने जो फैसला दिया था, वह 2006 में दिए गए फैसले की तिथि से प्रभावी होगा। 1995 से 2006 के बीच पदोन्नति में दिए गए आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप नहीं किया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता ने बताया कि पदोन्नति में आरक्षण के मुख्यत: तीन मानक हैं। पहला है पिछड़ापन दूसरा सेवा में प्रतिनिधित्व और तीसरा है कार्य क्षमता (इफिशिएंसी)। सरकार पदोन्नति में आरक्षण देना चाहती है तो सबसे पहले उसे यह देखना होगा कि जिसे आरक्षण दिया जाना है उसके पिछड़ेपन की स्थिति क्या है। अगर पिछड़पन दिखता है तो फिर यह देखना होगा कि जिसे आरक्षण दिया जाना है उसका संबंधित कैडर में प्रतिनिधित्व कितना है। अगर प्रतिनिधित्व मानक से कम है तो देखा जाएगा कि पदोन्नति में आरक्षण देने से संबंधित कैडर की कार्य क्षमता पर क्या प्रभाव पड़ेगा। इन तीनों मानकों को देखने के बाद ही पदोन्नति में आरक्षण दिया जा सकेगा। कैडर के अनुसार डेटा तैयार कर आंकलन किया जाएगा। इन तीनों मानकों की संरचना क्या होगी, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप नहीं किया है।
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