सिहरन पैदा करती ठंड के बीच सावन जैसी रिमझिम पूरे उत्तर प्रदेश में रविवार को भी जारी रही। बूंदाबांदी के साथ ही दिनभर धुंध छाई रही। हवा ने ठिठुरन भी बढ़ा दी है। मौसम विभाग ने 25 जनवरी तक तेज हवा और गरज-चमक के साथ बूंदाबांदी की संभावना जताई है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में घने कोहरे के साथ कोल्ड डे कंडीशन यानी अधिक ठंडे दिन की चेतावनी भी जारी की गई है। वहीं इस बारिश का खेती-किसानी पर मौसम का मिला जुला असर दिख रहा है। आलू, मटर, दलहनी व तिलहनी फसलों के साथ सब्जियों को नुकसान के आसार हैं। वहीं, गेहूं व जौ आदि फसलों को बारिश से लाभ हो सकता है।
मौसम विभाग के अनुसार आने वाले दो दिनों तक बादलों की आवाजाही जारी रहेगी। सुबह के समय हल्के से मध्यम कोहरा हो सकता है। साथ ही अधिकतम तापमान 19 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम तापमान 12 डिग्री सेल्सियस के मध्य रह सकता है। बारिश की वजह से प्रदेशभर के न्यूनतम तापमान में बढ़ोतरी दर्ज की जाएगी।
बरेली में सबसे ज्यादा 25.1 मिलीमीटर बारिश : रविवार को उत्तर प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में बारिश हुई। बरेली में 25.1 मिलीमीटर, नजीबाबाद में 12.0 मिलीमीटर, मुजफ्फरनगर में 10.8 मिलीमीटर और लखीमपुर खीरी में दो मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई। रविवार को लखनऊ का अधिकतम तापमान 17.5 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम तापमान 11.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। बारिश के कारण न्यूनतम तापमान लगातार नीचे जा रहा है। रविवार को सबसे कम तापमान मुजफ्फरनगर में 6.0 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान प्रयागराज में 25.8 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।
क्यों बिगड़ा मौसम : चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) कानपुर के मौसम विज्ञानी डा. एसएन सुनील पांडेय ने बताया कि जनवरी में करीब दो सप्ताह तक बादल छाए रहे, जो फसलों और फलों के लिए मुसीबत बने। 21 जनवरी को सक्रिय हुए पश्चिमी विक्षोभ की वजह से उत्तरी राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली पर प्रेरित चक्रवाती हवा का क्षेत्र विकसित हुआ। अगले ही दिन यह जोड़ी पश्चिम उत्तर प्रदेश, कानपुर मंडल सहित उत्तरी मध्य प्रदेश को कवर करते हुए पूर्व की ओर बढ़ी। इससे उत्तर प्रदेश की हवा का रुख दक्षिण पूर्वी हुआ और बारिश हुई।
बारिश से आलू, मटर व दलहनी फसलों को नुकसान : कृषि विज्ञानी डा. अनिरुद्ध त्रिपाठी कहते हैं कि बरसात से गेहूं व जौ आदि फसलों को लाभ है। चना व मटर को भी फायदा है केवल खेत में पानी न भरा हो। मौसम खुलने पर किसान रोगनाशी दवाओं का फसलों में छिड़काव करें और जिन खेतों में पानी भरा है उसे हर हाल में निकालने का इंतजाम करें। अब मौसम खुलने पर कोहरा व पाला पड़ सकता है। इससे आलू, दलहनी व तिलहनी अगैती व पछैती फसलों में झुलसा रोग लग सकता है।
ऐसे प्रभावित हुईं फसलें : रबी की फसलों में गेहूं को तो नमी की जरूरत थी, इसलिए उसे कोई नुकसान नहीं हुआ। खेतों में पानी भरने से आलू झुलसा रोग से प्रभावित होने लगा। पिछले वर्षों से इस साल आलू का रकबा कम रहा। अब उत्पादन घटा तो आलू का संकट बढ़ सकता है। पारा गिरने पर टमाटर, मिर्च व मटर की फसलों को नुकसान हो रहा। अभी मौसम सरसों के लिए नुकसानदेह नहीं है, लेकिन माहू रोग का खतरा बढ़ रहा। मौसम विज्ञानी बताते हैं कि फर्रुखाबाद और कन्नौज में बारिश व ओलों की वजह से 15 से 20 प्रतिशत फसल को नुकसान हुआ है।
ऐसे कर सकते बचाव : आलू सुरक्षित रखने के लिए किसान कापर आक्सीक्लोराइड को दो किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। अधिक प्रकोप पर फफूंदीनाशक डाइथेन एम 45 की दो ग्राम दवा को प्रतिलीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। ये दवा न मिले तो कार्बेंडाजिम नामक फफूंदीनाशक की तीन ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना फायदेमंद होगा। इसका छिड़काव 10-15 दिन के अंतराल पर दोहराना चाहिए। सरसों को माहू से बचाने के लिए इमिडाक्लोप्रिड नामक कीटनाशक की 0.5 मात्रा को एक लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। यह न मिले तो क्लोरोपारीफास 20 ईसी एक मिली को एक लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। सिंचाई बिल्कुल न करें।