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*बेसिक शिक्षा परिषद बन रही है प्राईवेट लीमिटेड कम्पनी.....🤔*
प्रेरणा एक मामूली अप्लीकेशन है,अगर यह भूल आप कर रहे हैं तो अाप स्वंय अपने, परिवार,समाज और देश के साथ खिलवाड कर रहे हैं। इस अप्लीकेशन पर बहुत सारे रिसर्च किये गये हैं। और इसको केन्द्र बिन्दु बना कर बेसिक शिक्षा परिषद को एक प्राईवेट लिमिटेड कम्पनी बनाने की पूरी योजना तैयार कर ली गयी है। पिछले वर्ष *मानव सम्पदा* का जिन्न आपके सामने मात्र सूचना भर के नाम पर लाया गया। जिसको आप सब भांप नही पाये,फिर *ग्रेडेड लर्निंग* का पांच दिवसीय प्रशिक्षण देकर *प्रेरणा एप* लांच किया गया। जिसे भी आप सब पुन: नही भांप पाये।
अब यहीं से शुरू होता है....बेसिक शिक्षा को प्राईवेट लिमिटेड कम्पनी बनाने का असली खेल। जिस परिषद के बच्चों को परीक्षा के लिए एक अदद गुणवत्ता युक्त प्रश्न पत्र नही मिलते थे,उसे ग्रेडेड लर्निंग के माध्यम से *ओएमआर और हाई ब्रान्ड का प्रश्न पत्र* दिया गया और परिणाम को प्रेरणा पर अपलोड किया गया ....आप लोग इसे भी भांप नही पाये।
*यह है बेसिक शिक्षा का नीजिकरण....।*
पैसा सरकार का,मेहनत आप सबका। *बीचौलिया एनजीओ*। एनजीओ के पास ना स्टाफ है ना कर्मचारी और ना आफिस। सरकार से पैसा लेकर अधिकारियों से दबाव दिला कर उसने आपके बीच के ही शिक्षकों से मात्र पांच दिन का प्रशिक्षण करा कर *आपके सिर पर बैठ कर मानिटरिंग* करना शुरू कर दिया। सरकार का पैसा भी खर्च हो गया। किसी को नौकरी भी नही देनी पडी,कहीं से विरोध नही झेलना पडा। और पैसा को जहां पहुंचना था वह सही स्थान पर पहुंच भी गया।
किसी बेहतर व्यवस्था को चौपट करना हो तो उसका सबसे शानदार तरीका है वहां पर कार्यरत लोगों के बीच वेतन विसंगतियों की एक खाई खोद दो,जो कभी ना पट सके। मानक ऐसे बदल दो और कार्य समान लो कि वह आपस में ही लडते झगडते रहें। आज स्थिति आपके सामने है। प्राईमरी में सहायक अध्यापक और शिक्षामित्र,जूनियर में सहायक अध्यापक और अनुदेशक,कार्यालयों में नियमित लिपिक और आउट सोर्सिंग वाले आपरेटर। *अंग्रेजों ने तो गोरे काले का भेद किया था,फूट डालों राज करो* की पालिसी अपनायी थी। और आज तो अपनी चुनी हुयी सरकार ही अपने नागरिकों के बीच *लडाओ और राज करो* की राह पर चल रही है। क्या यही आजादी गांधी और भगत सिंह ने मांगी थी। संविधान में कल्याणकारी राज्य की संकल्पना है। जो अपने अपने नागरिकों के बीच किसी प्रकार का विभेद ना करे। पर हो क्या रहा है साहब!
गरीबों के बच्चों के शिक्षा का निजिकरण करने की आप अलख जगा रहे हैं। फिनलैन्ड चले जाईए।यूनाईटेड स्टेट,यूके, कनाडा,जर्मनी और आस्ट्रेलिया चले जाईए। दुनिया के टाप क्लास के शिक्षा में अग्रणी देश हैं। प्रोफेसर से अधिक सेलरी प्राईमरी के शिक्षकों के पास है। विधायकों और सांसदों से अधिक कोटे प्राईमरी के शिक्षक के पास है। *उत्तर प्रदेश में तो प्राईमरी का मास्टर चोर है। यह आप और आपका सिस्टम रोज चिल्ला चिल्ला कर कह रहा है।* क्योंकि सबसे सस्ती सेल आपके यहां है। जहां पर चार रूपये में भरपेट भोजन,तीन सौ रूपये में ड्रेस,दो सौ रूपये में स्वेटर सिर्फ प्राईमरी का मास्टर कमीशन के साथ देता है। जूता-मोजा,बैग आपने दिया। उसकी कीमत और गुणवत्ता आपको ही पता है। स्थिति आज यह है कि *अधिकांश स्कूलों के बच्चे दोनों पैर में अलग अलग नम्बर और कपडा कागज लगा कर जूते पहन रहे हैं।* क्या यह कडवा सच नही है। आप शिक्षकों को बदनाम इसलिए कर रहे हैं कि जनमानस में एक धारणा पैदा हो कि प्राईमरी स्कूल की जगह पब्लिक स्कूल में शिक्षा बेहतर मिलती है। गरीब अपना पेट काट कर अमीरों के स्कूलों में अपने बच्चों को पढाये और आप अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड कर शिक्षा का *निजीकरण कर बेसिक शिक्षा परिषद* को एक *प्राईवेट लिमिटेड कम्पनी बना सकें* जो गरीबों पर *इस्ट इण्डिया* की तरह कार्य करती रहे।