शिक्षा व्यवस्था की दुर्दशा व सँविदा शिक्षको के शोषण की कहानी


शिक्षा व्यवस्था की दुर्दशा व सँविदा शिक्षको के शोषण की कहानी
सरकारे निजीकरण को केन्द्र (ध्यान) मे रखकर नीति बनाती है 
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👍जब एक सरकार गलत काम करती है तो हम उसे बदल देते है पर दुसरी सरकार भी वही गलती करे जो पहली सरकारे करती थी तो आप क्या करोगे।क्रांग्रेस सरकार ने 15 दिसम्बर 1994 को एक अन्तराष्ट्रीय समझोता किया जिसे हम WTO के नाम से जानते है। इस एंग्रीमैन्ट की कण्डीशन ये है कि भारत सरकार शासनिक व प्रशासनिक कार्यो को छोडकर हर क्षेत्र का निजीकरण करेगी.यानि शासकीय व प्रशासनिक क्षेत्र को छोडकर हर क्षेत्र प्राईवेट लोगो के हाथ मे चला जायेगा एग्रीमैन्ट काग्रेस ने किया परन्तु उसी ए्ग्रीमैन्ट को बीजेपी की सरकार आगे बढा रही है  तो काँग्रेस व बीजेपी मे फिर अन्तर ही क्या है ।
👍WTO एग्रीमैन्ट मे सर्विसेज एक बहुत बडा चैप्टर है 64सर्विसेज सैक्टर है।और भारत के लिये WTO मे एक कण्डीशन है भारत सरकार किसी भी सर्विसेज को कोर सैक्टर मे नही रख सकती कोर सैक्टर यानि जिसका प्राईवेटाईजेशन ना हो ऐसे सैक्टर को कोर सैक्टर कहा जाता है। चाहै वो बैकिगं का क्षेत्र हो या बीमा का या शिक्षा का आप किसी भी सैक्टर को कोर सैक्टर मे नही रख सकते शिक्षा भी ऐसी ही एक सर्विसेज है।अब सरकारो को शिक्षा के प्राईवेटाईजेशन करने के लिये नीतिया बनानी थी।
तो प्राईवेट स्कूलो को स्थापित करने के लिये सरकारी स्कूलो की गरिमा को गिराना बहुत जरूरी था।ताकि लोगो का ध्यान प्राईवेट स्कूलो की तरफ मुड जाये।तब शिक्षको को ठेके पर रखने की व्यवस्था शुरू हुई।और तब जन्म हुआ शिक्षामित्रो का.नियोजित शिक्षको का अतिथि शिक्षको का हर राज्य मे अलग नाम।अब आप गुरूजी.शिक्षक, व शिक्षामित्र तीनो शब्दो को बोले जाने वाले भाव को समझे।खुद अपने मन के भाव को समझे अगर आपको कोई गुरूजी कहकर पुकारे तो कैसा अनुभव करेगे।और अगर शिक्षामित्र कहकर पुकारे तो कैसा अनुभव .समाज मे शिक्षा देने वाले व्यक्ति का जो पहले सम्मान था आज नही है।इसके पीछे मकसद एक ही था कि किसी तरह सरकारी स्कूलो मे बच्चो की सँख्या कम हो जब बच्चो की सँख्या कम होगी तो शिक्षको की सँख्या भी कम करते रहेगे .शिक्षक कम होगे तो कुछ स्कूलो की जगह खाली होगी.तो उसे या तो बेचेगे या लीज पर दे देगे। और पहले शहरो मे प्राईवेट स्कूलो को बहुत तेजी से लाईसेसँ दिये गये जिससे शहरो मे इस योजना से सरकारी स्कूलो मे से 20% बच्चे कम हुए। जबकि ग्रामीण क्षेत्र मे शिक्षामित्रो की बजह से या ये कहे कि उनकी मेहनत से सरकारी स्कूलो मे बच्चो की बढोतरी देखने को मिली।
इससे जब सरकार का काम नही चला तो मिड डे मिल योजना की शुरूआत की गयी जिसमे 10% बच्चे ओर कम हो गये .क्योकि इस योजना को लागू करते वक्त सरकारो मे बैठे कर्णधारो ने एक बेतुका तर्क ये देना चालू कर दिया कि सरकारी स्कूलो मे तो गरीबो के बच्चे पढते है।उनका कुपोषण दूर करने के लिये ये योजना है।इसका समाज पर गहरा प्रभाव पडा क्योकि व्यक्ति बच्चो को भोजन ग्रहण करने के लिये नही.
ज्ञान अर्जन के लिये स्कूलो मै भेजते है।इससे जो मध्यम वर्ग है या सरकारी कर्मचारी है।उनके बच्चे भी शर्म की बजह से सरकारी स्कूलो से अलग हो गये।आज समाज की भावना ये बन गयी कि एक रिक्शा चलाने वाला भी अपने बच्चो को स्टेटस के नाम पर अपने बच्चो को इँगलिश मीडियम स्कूल मे पढाना पसँद करता है।जब देश के नेता बोलेगे कि सरकारी स्कूलो से नक्सली निकलते है तो आप समझ सकते है इन लोगो का मकसद सरकारी स्कूलो को बेहतर बनाना नही ब्लकि उसकी गरिमा को खत्म करना है।जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगो की भावना प्राईवेट स्कूलो के साथ जुड सके।
आर टी ई एक्ट अधिनियम 2009 
इसी नीति का हिस्सा है जिसमे प्राईवेट स्कूलो मे 25% कोटा गरीब बच्चो के लिये आरक्षित किया गया।गरीब बच्चे तो सरकारी स्कूलो मे पढते है ये मै नही सरकार कहती है अर्थात इसके बनने से सरकारी स्कूलो से 25% बच्चे ओर कम हो गये।शहरो मे आप सरकारी स्कूलो मे जाये और पता करो कि वहाँ पर कितने बच्चे है व शिक्षक कितने है।तो सब समझ मे आ जायेगा।
अगर हम राष्ट्र निर्माण की बात करे .तो राष्ट्र निर्माण तभी सम्भव है जब सबके लिये एक समान शिक्षा हो।परन्तू उस समान शिक्षा के ढाँचे को तो अपने स्वार्थ के कारण इन राजनीतिज्ञो ने तोडने का काम किया है।धीरे धीरे ये 25%कोटा भी कम करते जायेगे और 2055 तक ये पुरा समाप्त हो जायेगा।क्योकि युरोप वाले जब कोई नीति बनाते है तो वो कम से कम 50 वर्ष का समय रखते है।
आर टी एक्ट अधिनियम (2009) 
का दूसरा उद्देश्य जो सँविदा कर्मी शिक्षक रखे गये थे उनकी सँख्या को ज्यादा से ज्यादा कम करना है।उनका ज्यादा से ज्यादा शोषण करना।जिसके कारण अकेले उत्तर प्रदेश मे 2600 शिक्षामित्रो ने आत्महत्या कर ली।ये आत्महत्या नही न्यायिक हत्या है।
इतिहास मे पहली बार ऐसा हुआ कि उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश मे तो देश की बेटियो ने मुँडन तक कराना पडा।खैर बात आर टी ई एक्ट पर ही करेगे।उसमे जो पात्रता रखी गयी है टैट की अनिवार्यता की उससे क्या होगा 40% टैट पास करलेगेँ।वो सब सहायक अध्यापक बन जायेगे। परन्तू जो 60%  बचेगे उनका क्या। प्रशिक्षित वो भी हो चुके है उन्है प्रशिक्षित वेतनमान मिल जाना चाहिये लेकिन सरकार ऐसा नही कर रही है और सरकार ने नयी  राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के पैरा पी .5.1.8 मे जो की निम्नलिखित है।""2022तक देशभर मे पैराटीचर (शिक्षा कर्मी.शिक्षामित्र. आदि ) व्यवस्था को बँद कर दिया जायेगा।इस पर सरकार का तर्क है कि शिक्षक पुरी तरह अपने काम के प्रति समर्पित हो ओर समुदाय के साथ गहरे सम्बन्ध बनाये।सत्ता धीशो ने ये नीति तो बना दी परन्तु उन्है वोट बैकँ का डर भी सताता रहता है। जैसै बिहार व पश्चिमी बँगाल मे 2021 मे चुनाव होने है फिर यूपी के चुनाव आ जायेगे. ओर अकेले बिहार मे 3.5लाख नियोजित शिक्षक है।वोट बैकँ की राजनीति के कारण ये उसको अभी लागू नही करेगेँ।
अब सोचने वाली बात ये है कि आर टी ई एक्ट 2009 अधिनियम 
क्या वाकई शिक्षा मे गुणवत्ता लाने के लिये बना ।
या सँविदा शिक्षको के शोषण करने के लिये बना।क्या ये शिक्षा के निजीकरण की तरफ बढता सरकार का अगला कदम है।  इसको जानना है ।क्या नयी शिक्षानीति गुणवत्ता लाने के लिये बनाई गयी है या निजीकरण की तरफ सरकार का एक और बढता  कदम है ये जानना है
तो WTO  की नीतियो को समझना पडेगा।
क्योकि हमारे देश की सरकारो ने देश की जनता को कभी यह बताने का साहस नही जुटाया कि आखिर इस समझोते को लागू करने के पीछे उनकी क्या मजबूरी थी।
👍ब्लकि इन सरकारो के व्यवहार से तो ऐसा लगता है कि मानो वे भारत के नागरिको की रक्षा के लिये नही ब्लकि विश्व व्यापार सँगठन के हितो के लिये चुनकर आयी है।जबसे ये समझोता हुआ है तब से विश्व व्यापार की शर्तो के सन्दर्भ मे हमारे राजनेता लगातार झूठ बोलकर देश को गुमराह कर रहै है।ये देश को नही बतायेगेँ कि आज जो हम रेलवे क्यो बेच रहे है 
बिजली का निजीकरण क्यो कर रहै है।यहाँ तक अपनी खनिज सम्पदा को भी विदेशी कम्पनी को बेच देना चाहते है।और ये सब हो रहा है .WTO   के कारण सरकारे मजबूर है।उन्है शिक्षा के निजीकरण को ध्यान मे रखकर ही नीति बनानी है ना कि गुणवत्ता को ध्यान मे रखकर।अगर सरकार अपने नागरिको के हित मे सोचती तो आर टी ई एक्ट अधिनियम 2009  इन सँविदा शिक्षको को इससे बाहर रखती क्योकि इनकी नियुक्ति 1999 से 2005 के बीच की है।अगर गुणवत्ता की बात होती तो यै टैट की परीक्षा उन स्थायी शिक्षको पर भी लागू होती जिनकी नियुक्ति 1999 के बाद हुई है।पर ये सिर्फ सँविदा शिक्षको पर ही लागू हुई।
और ऐसी नीतिया केवल शिक्षा के क्षेत्र मे ही नही बनी ब्लकि हर क्षेत्र मे  बनी ।क्योकि सरकारो को हर क्षेत्र का प्राईवेटाईजेशन करना है

नोट-- इन सबका एक ही समाधान है ओर वो है सरकार की इन नीतियो की भी समीक्षा हो।ओर इनकी समीक्षा का एक कानूनी आधार भी है।जिसका मै आगे वर्णन करूगाँ।
संजीव कुमार बालियान
8433029010