👉शिक्षा:मित्रों का उदय वर्ष-1997-1999
👉 जन्मदाता सरकार- मा. कल्याण सिंह जी (बीजेपी)
👉नियुक्ति का मानक- इंटरमीडिएट व हाई मेरिट बेस.
👉नियुक्ति का कारण- उस समय राज्य की प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था बहुत ही दयनीय थी दूर दूर तक कोई पढ़ाने योग्य शिक्षक नहीं मिल रहे थे सरकार को.
👉फिर कल्याण सिंह सरकार ने निर्णय लिया कि विद्यालयों का संचालन करने के लिए शिक्षामित्र नामक पद सृजित किया जाय.
👉जिसमें उन्ही छात्रों की नियुक्ति होगी जो इंटरमीडिएट पास हो और गांव में जिसकी सबसे अधिक मेरिट अंक हो.
👉(यहाँ आप सोच सकते हैं उस जमाने में नकल नाम की चीज नही थी जिसके लिए कल्याण सिंह जी आज भी जाने जाते हैं.)
फिर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू हो गयी.
निर्धारित मानदेय -2250₹
👉अब सरकार को कम पैसे में उस समय के हाई मेरिट छात्र शिक्षक शिक्षामित्र के रूप में मिल गये
👉विद्यालयों का संचालन शुरू हो गया.
👉शिक्षामित्रों ने निरंतर अपने कार्य को ईमानदारी से करते चले आये और 2007 में यूपी सरकार ने इनके मानदेय को 3500₹ कर दिया.
👉फिर शिक्षामित्रों ने देखा कि जो छात्र इनके सहपाठी थे इनसे कमजोर पढ़ने में थे वो अपनी योग्यता जैसे बीए, बीएड, बीटीसी करके सहायक अध्यापक के रूप में इनसे 10 गुना वेतन पर उसी विद्यालय में नियुक्त होकर आये.
👉उसी विद्यालय में उसी काम का शिक्षामित्र 3500₹ पाता था वही वह अध्यापक 40 हजार रुपये पाता था जो शिक्षामित्रों को सोचने पर मजबूर कर देता काश हम सरकार के बहकावे में न आये होते और अपनी योग्यता पूरी कर लेते.
👉फिर शिक्षामित्रों ने अपनी आवाज उठाई धरना प्रदर्शन किये लाठियां भी खाई, अंत में 2010 में यूपी सरकार ने एनसीटीई से आज्ञा लेकर इनको दूरस्थ बीटीसी करवाकर इनकी शिक्षक बनने की योग्यता पूरी करवाई.
👉फिर 2012 में सरकार बदली फिर शिक्षामित्रों ने अपनी आवाज उठाई फिर लाठी डंडे पड़े अंततः अखिलेश सरकार ने इनको सहायक अध्यापक पद पर समायजित कर दिया, और यह सहायक अध्यापकों की भांति 40 हजार पाने लगे.
👉फिर कुछ लोग इनके विरोध में कोर्ट चले गए कि शिक्षामित्रों को बिना टेट क्यों भर्ती किया गया जो कि यह टेट परीक्षा का प्रावधान 2010 में आया इसके पहले सभी नियुक्तिया नान टेट थी और इस केस को यूपी सरकार लड़ रही थी.
👉2017 में सरकार बदली
👉 योगी सरकार ने शिक्षामित्रों के केस को नजरअंदाज कर दिया और अंत में 25 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षामित्रों का समायोजन रदद् कर दिया.
👉फिर यूपी सरकार इनके लिए न दुबारा कोर्ट गयी न ही कोई सम्मान जनक रास्ता शिक्षामित्रों के लिए निकाला.
👉सरकार ने इनको कोर्ट के आदेश का हवाला देकर 10 हजार रुपये मानदेय पर 11 माह की सेवा पर पुनः रख दिया.
👉जब सरकार ने अपना पल्ला झाड़ लिया तो शिक्षामित्रों ने खुद अपनी लड़ाई लड़ना शुरू किया लेकिन आजतक उन्हें न्याय नहीं मिल पाया.
👉इसी अपमान से सदमे में आकर यूपी लगभग 1800 शिक्षामित्रों ने आत्महत्या कर लिया.
मुख्य बिंदु यह है कि-
👉1. यदि उस समय कल्याण सरकार ने इनको इंटरमीडिएट बेस व हाई मेरिट के आधार पर भर्ती न किया होता तो यह भी अपनी ग्रेजुएशन पूरी कर बीटीसी बीएड कर अपनी योग्यता पूरी करके शिक्षक बन सकते थे.
👉20 वर्ष अपना भविष्य प्राथमिक विद्यालयों में समर्पित करने वाले शिक्षामित्रों पर अयोग्यता का धब्बा लगाकर इनका समायोजन रद्द कर दिया गया
👉जबकि 2010 में यूपी सरकार ने इनको दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से ग्रेजुएट कराकर दूरस्थ बीटीसी भी करवाया.
👉 शिक्षामित्रों ने तो कहा भी नहीं था सरकार से कि हमको आप इंटरमीडिएट बेस पर रखिये.
नहीं तो यह इन 20 वर्षों में अपनी योग्यता तो पूरी ही कर लेते.
👉लेकिन इस 20 वर्ष के दौरान अगर यह लोग अपनी योग्यता भी पूरी करना चाहते तो अपनी रोजगार पर आंच आने की डर से व नियमों के उल्लंघन की डर से नहीं कर पाये.
👉उस समय जब शिक्षामित्र बने तो इनकी उम्र 20-22 वर्ष थी, पर आज यह 40-45 वर्ष के हो गये हैं.
👉आज इनको अपने बच्चों के उम्र के बच्चों के साथ परीक्षा देने पर मजबूर होना पड़ा है.
👉✔️कहावत है कि- बूढ़े घोड़े के साथ, नौजवान घोड़े की दौड़ में नौजवान घोड़ा ही जीतेगा.✔️
👉जब योग्यता धारण करने की उम्र थी तो सरकार ने इनको शिक्षामित्र बना दिया और इनके भविष्य के साथ आज इनके परिवार व बच्चों का भी भविष्य चौपट होने के कगार पर है.
👉क्योंकि मंहगाई को देखते हुए 10 हजार रुपये जिनके 2-3 लड़के लड़कियां घर परिवार का खर्च कहाँ से सम्भव होगा वह भी सिर्फ 11 महीने का मानदेय सिर्फ.
👉ऐसे मे आत्महत्या करना शिक्षामित्रों के लिए आसान रास्ता बचता है.
👉यदि सरकार चाहे तो उपाय है- यूपी शिक्षामित्रों के लिए अध्यादेश लाकर इनके सम्मान को वही से पुनः वापस किया जा सकता है.
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यही कहानी है यही दर्द है शिक्षामित्रों की😭😭😭
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आखिरी उम्मीद है बीजेपी सरकार से🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
सत्यम दूबे (बेटा शिक्षामित्र)
-7706938414