*सरकारी स्कूलों में आपका स्वागत है*
*लॉकडाउन* के कारण अधिकांश उच्च, निम्न एवं मध्यमवर्गीय परिवारों की *आर्थिक स्थिति* चरमरा रही है और आगे भी सुधार की गुंजाइश कम नजर आ रही है। अभिभावक *निजी स्कूलों* की फीस भरने में असमर्थ हैं और वे *फीस माफी* चाहते हैं। निजी स्कूल वाले मान नहीं रहे हैं। सरकार ने निजी स्कूल वालों से कहा भी है कि वे फीस न बढ़ाएं तथा एकमुश्त शुल्क भरने का दबाव न बनाएं। जरूरी नहीं कि सभी निजी स्कूल वाले सरकार का कहा मानेंगे। उनकी अलग *मजबूरियां* हैं। हो सकता है कि वे मान भी ले या नहीं भी माने। मेरा ऐसे *अभिभावकों* से अनुरोध है वे *सरकारी स्कूल* में अपने बच्चों को *प्रवेश* दिलाएं। 8 वीं कक्षा तक कोई *प्रवेश* या *मासिक* फीस नहीं है । *उत्तम शिक्षण* है । *योग्य शिक्षक* उपलब्ध है । सरल और समझने योग्य पाठ्यक्रम* , *अच्छे भवन* , *पर्याप्त फर्नीचर* , *निशुल्क यूनिफार्म* , *पुस्तकें*, * *मिड डे मील*, *आपके घर के निकट* ही हैं इसलिए कोई *वाहन शुल्क* नहीं।
आपके पास ज्यादा पैसा है तो *सरकारी स्कूल* में *डोनेशन* दे दें तो और *अधिक सुधार* आ जायेगा। एक बार *हम पर*, *हमारे स्कूलों* पर *विश्वास* करके तो देखें। *पुरानी पीढ़ी* भी इन *सरकारी स्कूलों* में पढ़ी है । *क्या वह किसी से कम है।* 9 वीं कक्षा के बाद *मामूली फीस* है । *अभिभावकगण* बेवजह सरकार पर दवाब बना रहे हैं कि निजी स्कूलों पर फीस कम करने को कहे । सरकार ने तो उनके सामने *सर्वसुविधायुक्त सरकारी स्कूलों* में प्रवेश का विकल्प दे रखा है । यदि अभिभावक निजी स्कूलों की *कार्यप्रणाली* से खुश नहीं है तो हमारे *शासकीय स्कूलों* में उनका *स्वागत* है । हम *बड़े -बड़े विज्ञापन अखबार* में नहीं देते । *अपनी प्रशंसा स्वयं नही करते। सरकारी स्कूलों का नेटवर्क देश के छोटे से छोटे गांव में है। पूरी पारदर्शिता है इसलिए हमारे स्कूलों की आलोचना कोई भी कर सकता है। अखबार के पन्नों में केवल हमारी बुराई ही छपती है पर आप केवल एक बार सेवा का अवसर दें तो आप हमारी अच्छाइयों से भी परिचित हो जाएंगे।* आज भी देश के करोड़ों बच्चे सरकारी स्कूलों के विद्यार्थी हैं , जो निजी स्कूलों से अधिक ही हैं ।
*नए सत्र से हम भी स्मार्ट क्लासें शुरू करने जा रहे हैं जिसकी शुरुआत निदेशालय स्तर पर हो चुकी है*
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