C/p*शिक्षक और कोरोना*
फेसबुक पर किसी भाई की एक पोस्ट पड़ी थी,जिसमें सुझाव दिया गया था कि लंबे समय से विद्यालयों के बंद होने के कारण शिक्षकों की 50% सैलरी को कोरोना आपदा फंड में जमा कर लिया जाना चाहिए। इसे पढ़कर मन थोड़ा विचलित हुआ और एक शिक्षक ने पोस्ट तैयार की आप सब अवश्य पढ़ें जिससे आपके दिमाग की भ्रांतियां दूर हो जाए।
*आपको पता नहीं है कि विद्यालय बंद होने के बावजूद प्रतिदिन इंटरनेट और वॉट्सएप के माध्यम से शिक्षण कार्य हो रहा है, जिसमें शिक्षक को सामान्य से ज्यादा लगन और परिश्रम से कार्य करना पड़ रहा है।*
इस महामारी के दौर में शिक्षण कार्य के अतिरिक्त अन्य कार्य जो एक शिक्षक को करने पड़ रहे हैं, अब वो भी बता देता हूं।👇
1⃣आपको शायद पता नहीं है पुलिस वालों के साथ चेक पोस्ट पर शिक्षक लगा है।
2⃣डाक्टरों तक मरीजों की सूचना पहुंचाने के लिए घर-घर सर्वे करने में शिक्षक लगा है।
3⃣घर घर जाकर राशन बांटने का कार्य भी शिक्षक ही कर रहा है।
4⃣विद्यालयों में जहां कोरोना क्वारंटाइन सेंटर है उस पर निगरानी के लिए, उन लोगों की व्यवस्थाओं के लिए राउन्ड द क्लॉक(24घंटे) शिक्षक लगा है।
5⃣डॉक्टरों के पास पहुंचने से पहले मरीज इन्हीं शिक्षकों के साथ रह रहा होता है, वह भी बिना किसी सुरक्षा किट के। बिना किसी सरकारी सहायता के। पीपीई किट तो बहुत दूर की बात है ढंग के मास्क और क्वालिटी सैनिटाइजर से भी शिक्षक महरूम है।
‼इतना सब करने के बाद भी हमारे देश की कुछ महान जनता को शायद शिक्षक का कार्य दिखाई नहीं देता।
❓न तो प्रशासनिक वर्ग, न अखबार और न ही नेताओं से उन्हें उनके कार्य की तारीफ मिलती है। तब भी वह निस्पृह कर्तव्य करने के लिए तत्पर है।
*यहां एक और बात करना चाहूंगा डॉक्टर यदि कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे हैं तो यह उनका काम है, उनका व्यवसाय है वे सम्मानीय भी है इस कार्य के लिए इसलिए उनको भगवान भी कहा जाता है।*
*यदि पुलिस के जवान सड़कों पर रहकर व्यवस्था में लगे है। ट्रैफिक और घटनाओं को नियंत्रित कर रही है तो यह उनका काम भी है।*
*लेकिन आप मुझे बताएं कि Quarantine सेन्टर पर कोरोना मरीजों की सेवा करना, उनके लिए भोजन की व्यवस्था करना, जल की व्यवस्था करना, उनकी निगरानी करना, मरीजों का सर्वे करना, घर पर क्वॉरेंटाइन किए गए लोगों पर नजर रखना कि वह हद तोड़ कर गाँव या शहर में घूमने ना लगे, क्या यह शिक्षकों का काम है?*
❓❓ शिक्षकों का काम तो विद्यालय में पढ़ाना है जो वह वर्ष पर्यंत करते हैं और अपने मूल कार्य के अलावा वह न जाने कितने अलग-अलग राष्ट्रीय कार्य करते है।
*फिर भी जनता के मन में शिक्षकों के प्रति जो दुर्भाव है वह विचारणीय है।*
1.मुझे लगता है ऐसे विचारों वाले ये लोग ईर्ष्या से भरे हैं।
२. ये अज्ञानी और मूढ़ मति लोग हैं जो सुनी सुनाई बातों को दोहराते हैं अपनी अक्ल का इस्तेमाल करते ही नहीं।
3. यह नकारात्मक प्रवृत्ति के लोग हैं जिन्हें जानकारी जुटाना और तथ्यों को बरतने से ज्यादा निंदा करना और किसी का अपयश करने में आनंद मिलता है।
4. यह भी हो सकता है कि सरकारी सिस्टम में फैले भ्रष्टाचार के प्रति जो आक्रोश है। उसकी भड़ास उन प्रशासनिक अधिकारियों पर नहीं निकालने की खीज को वे शिक्षकों के ऊपर निकालते हैं। क्योंकि शिक्षक ही एक निरीह प्राणी है, जो एकाएक उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
पर वे यह नहीं जानते कि शिक्षक ही देश का भविष्य बनाता है और यदि शिक्षक ने अपने कर्तव्य से मुंह मोड़ा तो उनकी संतानें किस दिशा को प्राप्त प्राप्त होंगी ।
*यह शुक्र करिए कि शिक्षक इतनी फालतू की बकवास सुनने के बाद भी अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हैं।*
यदि यह सारी बातें सुनकर आप को समझ में आ गई हो तो भी आप शिक्षकों के लिए अतिरिक्त सुरक्षा की मांग मत कीजिएगा। हम अपने हाल से संतुष्ट हैं और कर्तव्य के प्रति निष्ठावान भी ।